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Download Pitru Paksha 2020 पूर्वजों की आत्मा की शांति पितृ विसर्जन वार्षिक श्राद्ध कर्म विधि
श्राद्ध पक्षा 2020
पूर्णिमा श्राद्ध 2 सितंबर 2020 को होगा परन्तु पितृ पक्ष के सारे श्राद्व सितम्बर 03 , 2020 से आरम्भ होंगे जो सितम्बर 17, 2020 पितृ विसर्जन तक चलेंगे| धार्मिक मान्यता के अनुसार, पूर्वजो की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित किया जाता है। श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने से है। हिंदू धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं श्राद्ध पक्ष से जुड़ी हर वो जरूरी बात जिसे आपको जानना चाहिए।
यहां पर के बात बताना बहुत आवश्यक है शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में पितृ श्राद्ध का महत्व ज्यादा मन गया है | पितृ पक्ष का अर्थ है जिस दिन आपके पूर्वजों की तिथि है दिन आप अपने पूर्वजों का श्राद्ध करें| धार्मिक मान्यता है कि पूर्वजों की आत्मा को इससे शांति मिलती है या पितृ विसर्जन 2020 किया जाता है, यह आपने पूर्वजो की आस्था और श्रद्धा का रूप माना गया है|
श्राद्ध पक्ष 2020 की महत्वपूर्ण तिथियां नीचे दी गए है|
- कनागत २०२० दिनांक ३ सितम्बर से शुरू हो जाते है |
- कनागत २०२० समाप्ति दिनांक १७ सितम्बर है|
- (पितृ विसर्जन २०२०)
पूर्णिमा श्राद्ध: 2 सितंबर 2020
पंचमी श्राद्ध: 7 सितंबर 2020
एकादशी श्राद्ध: 13 सितंबर 2020
सर्वपितृ अमावस्या: 17 सितंबर 2020
पितृ पक्षा वर्ष २०२० तिथियां
Purnima Shraddha: September 01, 2020
Pratipada Sharddha: September 02, 2020
Dwitiya Shraddha; September 03, 2020
Tritiya Shraddha: September 04, 2020
Chaturthi Shraddha: September 05, 2020
Panchami Shraddha: September 07, 2020
Shashthi Shraddha: 08 September 2020
Saptami Shraddha: September 09, 2020
Ashatami Shraddha: September 10, 2020
Navami Shraddha: September 11, 2020
Dashami Shraddha: September 12, 2020
Ekadashi Shraddha: September 13, 2020
Dwadashi Shraddha: September 14, 2020
Travodshi Shraddha: September 15, 2020
Chaturdeshi Shraddha: September 16, 2020
Sarvapitru Amavasaya: September 17, 2020
श्राद्ध किसे कहते हैं?
श्रद्धा पूर्वक अपने पित्तरों को प्रसन्न करने का अर्थ श्राद्ध है| सनातन मान्यता के अनुसार जो परिजन देह त्यागकर चले गए है, उनकी आत्मा की शांति / तृप्ति के लिए सच्ची श्रदा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसी को श्राद कहते है| मान्यता ऐसे है की मृत्यु के बाद देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें।
पितृ कौन कहलाते है?
जिस भी किसी के परिजन चाहे विवाहित हो या अविवाहित हों चाहे बुजुर्ग बच्चा, पुरुष हो या स्त्री उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितृ कहा जाता है| पितृ पक्षा में मृत्युलोक से पितृ पृथ्वी पर आते है और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते है| पितृ पक्षा में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है| इससे घर में सुख और शांति बनी रहती है ऐसी मान्यता है|
मित्रों पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रथम वर्ष श्राद विधि का महत्व है, इसका फल अधिक प्राप्त होता है यह धार्मिक मान्यता है| श्राद विधि को विधि विध्न से काना ठीक बताया गया है हमने श्राद्ध कर्म 2020 की सरल विधि निचे विवरण अनुसार बताई है|
- सुबह जल्दी उठकर नित्य कार्य करने का पश्चात पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपकर और गंगा जल से पवित्र करना है |
- घर की स्त्रियाँ नित्य कार्य कर पितरो/श्राद के लिए भोजन तैयार करेंगी|
- पूजा एवं तर्पण की विधि ब्राह्मण से करवाएं |
- पितरों के तर्पण का अनुसार गाय का दूध और दही व् घी एवं खीर प्रदान करें|
- पूजा पूर्ण होने का पश्चात गाय, कुत्ता, कोवा को भोजन करवाएं|
- हिन्दू धर्म में गाय को विशेष प्रकार का दर्जा दिया गया है|
- पितृ को प्रसन्न करने के लिए इस दिन गाय को भरपेट घास खिलाना भी अच्छा है|
- ब्राह्मण को उत्तराभिमुख बिठाकर भोजन कराएं ब्राह्मण को दक्षिणा देकर विदा करे |
- श्राद्ध करने वाले यजमान निम्न मंत्रों से अग्नि में तीन बार आहुति दें जैसे प्रथम आहुति “अग्नये काव्यवाहनाय स्वाहा”
द्वितीय आहुति “सोमाय पितृमते स्वाहा” - ऐसा करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है|
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यदि आप अपने पितरों को खुश करते है तो देवता भी खुश होते है| पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन पृथ्वी पर आये पितरों को याद करके पितरों को विदाई दी जाती है| यदि की व्यक्ति द्वारा पूरे पितृ पक्ष में पितरों को याद न किया गया हो तो आप अमावस्या के दिन याद करके दान करने और गरीबो को भोज देने से पितरों पूर्ण रूप से शांति मिलती है ( ऐसी धार्मिक मान्यता है)|
पितृ पक्ष योग कब बनता है
हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष का खास महत्व है | पितृ पक्ष 15 दिन पितरों को समर्पित होता है| शाश्त्रो के अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपक्ष की पूर्णिणा से आरम्भ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं| भाद्रपद पूर्णिमा को उन्हीं का श्राद्ध किया जाता है जिन लोगों का निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो| शास्त्रों मे कहा गया है कि वर्ष के किसी भी पक्ष में, जिस तिथि को परिजन का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म उसी तिथि को करना चाहिए|
श्राद्ध तिथि जब याद ना हो
पितृ पक्ष में पूर्वजों की स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है| जिस तिनांक पर हमारे परिजन की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की दिनांक कहते है| कुछ लोगो को अपने परिजन की मृत्यु के तिथि रहती शास्त्री में इसका भी निवारण बताया गया है| शास्त्रों के अनुसार यदि किसी को अपने पितरों के देहावसान की तिथि मालूम नहीं है तो ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है। इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।